किसी भी समाज में सब कुछ मीठा -मीठा ही हो कड़वा तीक्षण कसैला न हो ये ज़रूरी नहीं है अमरीकी समाज भी इसका अपवाद कैसे हो सकता है। लेकिन एक फर्क है वहां अंदर की बात अंदर ही रहती है। समुन्दर अपना स्तर बनाये ही रहता है कितना भी जल बढे या घटे अंदर की हलचल बाहर नहीं आती। यही हाल अमरीकी समाज और अमरीकी रिसालों का है मसलन न्यूयॉर्क टाइम्स कोविड संकट के दौरान भारत के श्मशान घाटों की तस्वीर तो मुख पृष्ठ पर सजाता है लेकिन ट्रम्प के अमरीका का कोविड के दरमियान क्या हाल हुआ किसी से छिपा न रह सका। पश्चिमी प्रेस वाम झुकाव लिए रहता ही है दोगलाई उसके चरित्र में है। अब अदबदाकर एक बीबीसी वृत्त चित्र को खूब उछाला जा रहा है। और जबकि इसमें नया कुछ भी नहीं बतलाया गया है कल भी "वेस्टर्न लेफ्टीया तड़का मीडिया" का सुलूक यही था आज भी वही है फर्क इतना है इस मर्तबा भारतीय न्यायिक शिखरको ,एक संविधानिक संस्था तीसरे स्तम्भ को ही निशाने पे ले लिया गया है यह आकस्मिक नहीं है कल का एक शहज़ादा आज इसी वृत्त चित्र की ही भाषा बोल रहा है। भारत जोड़ने का यह प्रयास अप्रतिम है नायाब है साहब ऊपर से तुर्रा ये महम मोहब्बत की जुबां बोलते हैं ,कहते न लजाते हैं न कुछ सोचना ज़रूरी समझते हैं बोलने से पहले।
ये वही देस है जहां की रवायत रही है -
सबद सम्हारे बोलिए सबद के हाथ ना पाँव ,
एक सबद औषध करे ,एक सबद करे घाव।
शहज़ादे को इससे कोई मतलब नहीं इससे बात से के उनके उद्गारों प्रलापों से मेरा देश दुनिया भर में बदनाम होता है। इनके लिए खबर बड़ी चीज़ है अमरीकी के लिए देस बड़ा है।
न्यूयॉर्क टाइम्स ऐसा कुछ भी नहीं छापता जो वहां के समाज को कलंकित करने वाला हो मसलन वहां ओल्ड सिटीजन होम्स में वहां जहां मानसिक रोगी रहते हैं कई मर्तबा मरीज़ाओं के साथ धत्कर्म हुए हैं ,किसी को कानों कान खबर नहीं है। सत्तर आदि दशक में बीबीसी भी भारतीय समाज की विकृत तस्वीर प्रस्तुत करने में नहीं चूकता था -सुबह सवेरे 06. २० पर ये रेडुआ खबर सुनाता है भारत की फलां जगह पर एक ९५ साला वृद्धा के साथ बलात्कार हुआ।
ट्रम्प ने क्या गत बना दी थी अमरीकी समाज की किसी से छिपा नहीं था -केपिटल हिल सेना को सौंप दिया गया था ,ये ज़िद्दी आदमी चुनाव में अपनी हार मानलेने को कहाँ राजी था। आज ये सब हकीकत एक इतिहास है।
अलबत्ता वहां (अमरीकी समाज में )वृद्धों और नौनिहालों को अमूमन विशेष दर्ज़ा प्राप्त है। अपनी आप बीती कहूं तो मेरे अमरीका प्रवास के दौरान मेरी वाकिंग स्टिक जब भी टेक से फिसल कर गिरी उसे किसी गोरे या फिर गोरी ने ही उठाकर दिया। फिर वह स्थान कोई खाने -पीने की जगह हो या स्टोर या फिर माल।कूट- कूट कर कर्टसी भरी है यहां नागरिकों में। भले ये भलमनसाहत सभ्रांतता दिखाऊ ,ऊपर से ओढ़ी हुई हो। वहां सड़क क्रॉस करने में कभी डर नहीं लगा दोनों तरफ का ट्रेफिक अपने रुक जाएगा और आपको जाने का इशारा करते हुए ठहर जाता है। स्कूल बस आकर रुके तब भी यही होता है जब तक बच्चे किनारे न हों लें सब ट्रेफिक विराम में आ जाता है।
यहां बरसात में कोई बड़ी गाड़ी वाला छपाक से आपका लिबास गंदा करके निकल जाएगा। ज़ेब्रा क्रॉसिंग पर कोई स्कूटर सवार रफ़्तार बढ़ाकर आपके आगे से सर्र से गुज़र जाता है। वहां अमरीका में पंद्रह साल के किशोर को ड्राविंग लाइसेंस हासिल करने की पात्रता हासिल है। गाड़ी के पीछे लिखा होगा -स्टूडेंट इनसाइड।
गाड़ी में शिशु के होने पर भी यही चेतावनी लिखी होती है चाइल्ड इनसाइड ,बच्चा अपनी चाइल्ड सीट पर पीछे एडजस्ट किया जाता है यहां भारत में अक्सर मोटरसाइकिल के डंडे पर बैठा हुआ मिल जाएगा। एक स्कूटर पर पूरा कुनबा दिख जाएगा।
(ज़ारी )
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