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Showing posts from June, 2020

प्रेम के बदलते स्वरूप की ओर आपकी तवज्जो चाहेंगे। हम जज की भूमिका में नहीं आएंगे और न ही नैतिक अनैतिक लफ़्फ़ाज़ी करेंगे ,समाज की अनेक परतें है प्रेम भी उसी के अनुरूप बहु -परतीय ,बहु -युगलीय होता चला गया है ,यहां हम दोनों की झांकी प्रस्तुत कर रहें हैं। सुतराम !पहले उद्दात्त स्वरूप की झलक अनन्तर बहु -युगलीय प्रेम से आपका परिचय नज़दीकी से कराएंगे :

कबीर यहु घर प्रेम का ,खाला का घर नाहिं , सीस उतारे हाथ धरि सो पैठे घर माहिं।  व्याख्या :प्रेम यौद्धा वही है जो दैहिक प्रेम से परे चला गया  जिसने काम क्रोध दोनों को जीत लिया है ,माया मोह लोभ से जो पार गया है जिसने अपना अहंकार तज  दिया है आंतरिक शत्रुओं को जिसने मात दे दी है जो करुणा और तदअनुभूतिं से भर गया है वही सच्चा प्रेमी है ,ये खाला जी मौसी साहिबा का घर नहीं है जहां आपकी आवभगत होगी जहां मेहमान नवाज़ी चलती है अदबियत के तहत।  पूछा जा सकता है :फिर यह पोली- अमोरस (poly amorous ) लव क्या है। एकल पति एकल पत्नी प्रेम ,बहुपत्नी प्रेम ,बहुपति प्रेम या बहुपतित्व ,सहजीवन कहो तो लिविंग टुगेदर के बाद अब बहुयुगलीय प्रेम यानी पोली -अमोरस  प्रेम ने दस्तक दी है। यहां हम उद्दात्त प्रेम और पशु स्तरीय प्रेम की बात नहीं करेंगे। प्रेम के बदलते स्वरूप की  ओर आपकी तवज्जो चाहेंगे। हम जज की भूमिका में नहीं आएंगे और न ही नैतिक अनैतिक लफ़्फ़ाज़ी करेंगे ,समाज की अनेक परतें है प्रेम भी उसी के अनुरूप बहु -परतीय ,बहु -युगलीय होता चला गया है ,यहां हम दोनों की झांकी प्रस्तुत कर रहें हैं।  सुतराम !पहले उद्दात्त स्व