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Showing posts from January, 2020

दर्द नशा है इस मदिरा का ,विगत स्मृतियाँ साकी हैं , पीड़ा में आनंद जिसे हो, आये मेरी मधुशाला

धर्म एव हतो हन्ति धर्मो रक्षति रक्षित : मरा हुआ धर्म मारने वाले का नाश ,और रक्षित किया हुआ धर्म रक्षक की रक्षा करता है इसलिए धर्म का हनन कभी न करना ,इसलिए कि मरा हुआ धर्म कभी हमको न मार डाले। जो पुरुष धर्म का नाश करता है ,उसी का नाश धर्म कर देता है ,और जो धर्म की रक्षा करता है ,उसकी धर्म भी रक्षा करता है। इसलिए मारा हुआ धर्म कभी हमको न मार डाले इस भय से धर्म का हनन अर्थात  त्याग कभी न करना चाहिए। यत्र धर्मो ह्यधर्मेण सत्यं यत्रानृतेन च ।  हन्यते प्रेक्षमाणानां हतास्तत्र सभासदः ‘‘जिस सभा में अधर्म से धर्म, असत्य से सत्य, सब सभासदों के देखते हुए मारा जाता है, उस सभा में सब मृतक के समान हैं, जानों उनमें कोई भी नहीं जीता ।’’ महाभारत का  भीष्म पर्व -भरी सभा  में जिसमें नामचीन भीष्म पितामह ,धृतराष्ट्र ,आदिक------ पाँचों पांडव -----मौजूद थे धूर्त और ज़िद्दी मूढ़ -मति दुर्योधन और कर्ण के मातहत दुश्शासन द्रौपदी का चीरहरण करता है यह तो भला हो अपने कन्हैयाँ का वस्त्र अवतार बन के आ गए द्रौपदी की आर्त : पुकार सुनके -और दुश्शासन थक हार के गिर पड़ा  यत्र धर्मो ह्यधर्मेण सत्यं यत्रानृतेन