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Showing posts from December, 2018

संसद बनी रखैल है ,इनकी खड़गे -सुरजे हो गए जैम। लीला -पुरुष खड़ा हतप्रभ है ,फिर भी करता इनसे प्रेम।

हिन्दू  न मुसलमान ,बस किसान और जवान , बने मेरे देश की पहचान , तब सच्चे अर्थों में भारत बने महान। .............................. राजनीति की नौटंकी चलती रहती है , कभी हंसाये कभी रुलाये , मौसम तो बदला करता है। सुख -दुःख दोनों संग चले हैं , जीवन कब ठहरा करता है। कर्म करो नहीं फल की चिंता , फल तो खुद मिलता रहता है। ................................................. जीत गए तो हम जीते हैं हार गए तो ईवीएम , बिलकुल शेष नहीं है शेम। देश सुरक्षा  गई भाड़ में राफेल बन गया इनका गेम, संविधान से खेले नित -उत नामचीन हुआ है नेम। कोर्ट के निर्णय को धकियाते ,  हो जाती जब  टै टै टैम। संसद बनी रखैल है ,इनकी  खड़गे -सुरजे हो गए जैम।  लीला -पुरुष खड़ा हतप्रभ है ,फिर भी करता इनसे प्रेम। प्रस्तुति :वीरुभाई (वीरेंद्र शर्मा )

पिज़्ज़ा -हट में ओवन से उठती हुई खशबूएं नथुनों को वैसे ही भर देतीं हैं जैसे कॉफी बीन्स की उड़ती हुई बू जो दिमाग तक खुद- ब-खुद पहुँच जाती है

हम हैं तुम्हारे तलब -दार हो जनाबे पिज़्ज़ा , हम को  तुमसे है प्यार  ओ ललकऊ  पिज्जा।  माहिरों के अध्ययन में पिज़्ज़ा को सबसे तलबी खाद्य माना गया है ,इसका चस्का लग जाता है ललक पैदा होने लगती है ललचाने लगता है लती कारक पिज़्ज़्ज़ा आखिर क्यों ?आइये सरसरी तौर पर ज़ायज़ा लेते हैं : इसमें मौजूद धुर (शीर्ष )अवयवों को देखिये -एक छोर पर इसमें वसा (चिकनाई ,फैट )है ,शक्कर (शुगर )है ,नमकीनियत  के लिए नमक है।यही तिकड़ी दिमागी कोशिकाओं के एक समान गुणधर्मा समूह -न्यूरानों को पुरुस्कृत करके तृप्ति का एहसास हम तक पहुंचाती है।  पिज़्ज़ा की ऊपरी तह का कुर -कुरापन ,चीज़ का नरम और चिपचिपा होना ,सॉस का लेसदार होना मिलकर इसे एक ख़ास सेवरि स्वाद और खुश्बूओं   से भर देते हैं। दिल और दिमाग दोनों को खुश मिज़ाज़ बना देता है यह स्वाद। उल्लेखित खाद्य तिकड़ी में चीज़ तो अपनी जगह  खुद ही तलब पैदा करने वाली शै है फिर इसका ब्रेड और सॉस संग  मेल इसे चस्के तक ललक तक ले आता है।  पिज़्ज़ा -हट में ओवन से  उठती हुई खशबूएं नथुनों को वैसे ही भर देतीं हैं जैसे कॉफी बीन्स की उड़ती हुई बू जो दिमाग तक खुद- ब-खुद पहुँच जाती है।  ऐन्द्रिक माय

Tackling climate change could save millions of lives, report says(HINDI )

कोई ऐसा अनहोना लक्ष्य नहीं है जिसे २१०० तक लागू न किया जा सके। इतना ही तो है के (वायुमंडलीय एवं भू - ) तापमानों का  पूर्व उद्योगिक युग में जितना स्तर था हमारा कार्बन आउटपुट उसके ऊपर तापमानों को २ सेल्सियस की वृद्धि से ऊपर न जाने दे।  पेरिस जलवायु सहमति (२०१५ )में उल्लेखित लक्ष्य यही था। इस लक्ष्य के करीब पहुँचने का मतलब है जीवश्म ईंधनों का विकल्प ,खपत में भूमंडलीय कमी फलतया वायुप्रदूषण में एक स्तर तक कमी लाना ,ताकि २०५० तक हर बरस दस लाख लोगों को मौत के मुंह में जाने से बचाया जा सके. घर के बाहर और भीतर का  वायु प्रदूषण  हर साल सत्तर लाख लोगों को मौत के मुंह में धकेल रहा है। दुखद और निराशा पूर्ण है अमरीका का गए साल २०१७ में पेरिस जलवायु समझौते से पल्ला झाड़ के अलग खड़े हो जाना।  २४ वीं आलमी बैठक इस लक्ष्य को कैसे हासिल किया जाए इसी मकसद से हो रही है जिसमें जलवायु विनियमन से ताल्लुक रखने वाले नियम और उनकी अनुपालना कैसी और कितनी हो रही है .COP 24 यानी चउबीसवाँ संयुक्त राष्ट्रसंघीय फ़्रेमवर्क (बुनियादी ढांचा सम्बन्धी )सम्मलेन (कन्वेंशन )इसी मकसद से आहूत किया गया है।  संयुक्त राष्ट्

'ये -चुरी' नहीं 'या -चोर 'है ये जो पी एम् का अर्थ पॉकिट मार बतलाता है

सबद सम्हारे बोलिये ,सबद के हाथ न पाँव , एक सबद औषध करे ,एक सबद करे घाव।  आप कहे भीतर गई ,जूती खात  कपाल।  'ये -चुरी' नहीं 'या -चोर 'है ये जो पी एम् का अर्थ पॉकिट मार बतलाता है।  ये कामोदरी और लिंगोदरी मार्क्सवाद के बौद्धिक गुलाम ,भकुए नहीं जानते के सनातन नामों को ओढ़े हुए अपने नामों पर भी ये शर्मिंदा हैं क्यों इनके माँ बाप ने इनका नाम सेकुलर 'सीता -राम ' रखा।  हम नहीं चाहते ,भारत धर्मी समाज का कोई भी प्राणि नहीं चाहता आगे चलकर इनको जूते पड़ें और ये कहें : "आप कहे भीतर गई ,जूती खाई कपाल  तीन शब्दों से आप वाकिफ हैं दोस्तों :हसोड़ ,मसखरा और भसोड़  इनमें से हसोड़ वह होता है जो यह जानता है के वह दूसरों पर  हँस रहा है  मसखरा वह होता है जो अपने कपडे फाड़ के खुद पे हँसता है  ये भकुए न हसोड़ हैं न मसखरे ये 'भसोड़' हैं। मूर्धन्य वह होता है जो बहुत ऊंचाई पर बैठा होता है और मूढ़ -धन्य वह जो बहुत नीचे गिर चुका होता है।  इनमें से पहले व्यक्ति के तौर पर शरद पंवार का नाम लिया जा सकता है जो हालांकि लकवा ग्रस्त हो गए थे लेकिन अंदर से संयत हैं  अपभाषा का प्रयोग नह