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प्रेम के बदलते स्वरूप की ओर आपकी तवज्जो चाहेंगे। हम जज की भूमिका में नहीं आएंगे और न ही नैतिक अनैतिक लफ़्फ़ाज़ी करेंगे ,समाज की अनेक परतें है प्रेम भी उसी के अनुरूप बहु -परतीय ,बहु -युगलीय होता चला गया है ,यहां हम दोनों की झांकी प्रस्तुत कर रहें हैं। सुतराम !पहले उद्दात्त स्वरूप की झलक अनन्तर बहु -युगलीय प्रेम से आपका परिचय नज़दीकी से कराएंगे :

कबीर यहु घर प्रेम का ,खाला का घर नाहिं ,
सीस उतारे हाथ धरि सो पैठे घर माहिं। 
व्याख्या :प्रेम यौद्धा वही है जो दैहिक प्रेम से परे चला गया  जिसने काम क्रोध दोनों को जीत लिया है ,माया मोह लोभ से जो पार गया है जिसने अपना अहंकार तज  दिया है आंतरिक शत्रुओं को जिसने मात दे दी है जो करुणा और तदअनुभूतिं से भर गया है वही सच्चा प्रेमी है ,ये खाला जी मौसी साहिबा का घर नहीं है जहां आपकी आवभगत होगी जहां मेहमान नवाज़ी चलती है अदबियत के तहत। 

पूछा जा सकता है :फिर यह पोली- अमोरस (poly amorous ) लव क्या है। एकल पति एकल पत्नी प्रेम ,बहुपत्नी प्रेम ,बहुपति प्रेम या बहुपतित्व ,सहजीवन कहो तो लिविंग टुगेदर के बाद अब बहुयुगलीय प्रेम यानी पोली -अमोरस  प्रेम ने दस्तक दी है। यहां हम उद्दात्त प्रेम और पशु स्तरीय प्रेम की बात नहीं करेंगे। प्रेम के बदलते स्वरूप की  ओर आपकी तवज्जो चाहेंगे। हम जज की भूमिका में नहीं आएंगे और न ही नैतिक अनैतिक लफ़्फ़ाज़ी करेंगे ,समाज की अनेक परतें है प्रेम भी उसी के अनुरूप बहु -परतीय ,बहु -युगलीय होता चला गया है ,यहां हम दोनों की झांकी प्रस्तुत कर रहें हैं।  सुतराम !पहले उद्दात्त स्वरूप की झलक अनन्तर बहु -युगलीय प्रेम से आपका परिचय नज़दीकी से कराएंगे :

आगि आंचि सहना सुगम, सुगम खडग की धार
नेह निबाहन ऐक रास, महा कठिन ब्यबहार।

व्याख्या :अग्नि का ताप और तलवार की धार सहना आसान है
किंतु प्रेम का निरंतर समान रुप से निर्वाह अत्यंत कठिन कार्य है।

कहाॅं भयो तन बिछुरै, दुरि बसये जो बास
नैना ही अंतर परा, प्रान तुमहारे पास।

व्याख्या :नैना ही अंतर परा, प्रान तुमहारे पास।
शरीर बिछुड़ने और दूर में वसने से क्या होगा? केवल दृष्टि का अंतर है।
मेरा प्राण और मेरी आत्मा तुम्हारे पास है।
नेह निबाहन कठिन है, सबसे निबहत नाहि
चढ़बो मोमे तुरंग पर, चलबो पाबक माहि।
व्याख्या :प्रेम का निर्वाह अत्यंत कठिन है। सबों से इसको निभाना नहीं हो पाता है।
जैसे मोम के घोंड़े पर चढ़कर आग के बीच चलना असंभव होता है।

प्रीत पुरानी ना होत है जो उत्तम से लोग ,
सौ बरसा जल में रहे पत्थर न छोड़े आग। 

प्रेम कभी भी पुरानी नहीं होती यदि अच्छी तरह प्रेम की गई हो जैसे सौ वर्षो तक भी
वर्षा मंे रहने पर भी पथ्थर से आग अलग नहीं होता।

प्रेम पंथ मे पग धरै, देत ना शीश डराय
सपने मोह ब्यापे नही, ताको जनम नसाय।

व्याख्या :प्रेम के राह में पैर रखने वाले को अपने सिर कटने का डर नहीं होता।
उसे स्वप्न में भी भ्रम नहीं होता और उसके पुनर्जन्म का अंत हो जाता है।

प्रेम पियाला सो पिये शीश दक्षिना देय
लोभी शीश ना दे सके, नाम प्रेम का लेय।

व्याख्या :प्रेम का प्याला केवल वही पी सकता है जो अपने सिर का वलिदान करने को तत्पर हो।
एक लोभी-लालची अपने सिर का वलिदान कभी नहीं दे सकता भले वह कितना भी प्रेम-प्रेम चिल्लाता हो.

प्रेम ना बारी उपजै प्रेम ना हाट बिकाय
राजा प्रजा जेहि रुचै,शीश देयी ले जाय।

व्याख्या :प्रेम ना तो खेत में पैदा होता है और न हीं बाजार में विकता है।
राजा या प्रजा जो भी प्रेम का इच्छुक हो वह अपने सिर का यानि सर्वस्व त्याग कर प्रेम
प्राप्त कर सकता है। सिर का अर्थ गर्व या घमंड का त्याग प्रेम के लिये आवश्यक है।
प्रेम प्रेम सब कोई कहै, प्रेम ना चिन्है कोई
आठ पहर भीना रहै, प्रेम कहाबै सोई।
व्याख्या :आठ पहर भीना रहै, प्रेम कहाबै सोई।</p>
सभी लोग प्रेम-प्रेम कहते है किंतु प्रेम को शायद हीं कोई जानता है।
यदि कोई व्यक्ति आठो पहर प्रेम में भीन्गा रहे तो उसका प्रेम सच्चा कहा जायेगा।
यह तो घर है प्रेम का, उंचा अधिक ऐकांत
सीस काटि पग तर धरै, तब पैठे कोई संत।
व्याख्या :यह घर प्रेम का है। बहुत उॅंचा और एकांत है। जो अपना शीश काट कर पैरों के नीचे रखने को तैयार हो
तभी कोई संत इस घर में प्रवेश कर सकता है। प्रेम के लिये सर्वाधिक त्याग की आवश्यकता है।
राम रसायन प्रेम रस ,पीबत अधिक सरल ,
कबीर पिबन दुरलभ है ,मांगे शीश कलाल। 
व्याख्या :राम नाम की दवा प्रेम रस के साथ पीने में अत्यंत मधुर है। कबीर कहते हैं कि इसे पीना
अत्यंत दुर्लभ है क्यों कि यह सिर रुपी अंहकार का त्याग मांगता है।

बहुपरतीय बहु युगलिया प्रेम 

अतिथि पोस्ट :
'मैं सीधे कह देती हूं- हां, मुझे अलग-अलग मर्दों के साथ रिश्ते रखना पसंद है. तो?'

24 साल की गरिमा तीन लड़कों से प्यार करती हैं और वो तीनों उनके बॉयफ़्रेंड हैं. ख़ास बात ये है कि गरिमा के तीनों बॉयफ़्रेंड्स एक-दूसरे को जानते हैं और सभी इन रिश्तों को लेकर सहज हैं। अब सवाल ये है कि क्या कोई शख़्स एक ही वक़्त में तीन लोगों से प्यार कर सकता है? गरिमा इसका जवाब 'हां' में देती हैं। दरअसल वो जिस तरह के रिश्ते मे हैं उसे 'पॉलीएमरस रिलेशनशिप'(Polyamorous relationship) कहते हैं और ऐसे रिश्तों के चलन को पॉलीएमरी(Polyamory) के नाम से जाना जाता है। भारत समेत अब दुनिया भर में लोग इस तरह के रिश्तों के बारे में खुलकर सामने आ रहे हैं।

क्या है 'पॉलीएमरस रिलेशनशिप'?

पॉलीएमरी (Polyamory) ग्रीक और लैटिन भाषा के दो शब्दों से मिलकर बना है। Poly (ग्रीक) और Amor (लैटिन)। Poly का मतलब है कई या एक से ज़्यादा और Amor यानी प्रेम। यानी कि एक वक़्त में एक से ज़्यादा लोगों से प्यार करने का चलन। पॉलीएमरी की एक सबसे बड़ी और ज़रूरी शर्त है- रिश्तों में ईमानदारी और पारदर्शिता। इस रिश्ते में शामिल हर पार्टनर एक दूसरे को अच्छी तरह जानते हैं और सबकी सहमति के बाद ही रिश्ता आगे बढ़ता है।

गरिमा और उनके प्रेमियों की कहानी, उन्हीं की ज़ुबानी

मैं तक़रीबन 13-14 साल की रही होऊंगी जब मुझे पहली बार प्यार हुआ। हम दोनों एक दूसरे के साथ काफ़ी ख़ुश थे। सब कुछ ठीक चल रहा था कि तभी मैं किसी और की तरफ़ आकर्षित होने लगी। लेकिन साथ ही मैं अपने पहले पार्टनर को भी नहीं छोड़ना चाहती थी। मगर ऐसा कैसे मुमकिन है कि एक लड़की के दो बॉयफ़्रेंड हों? किशोरावस्था के कुछ साल मेरे लिए बेहद उलझन भरे और तकलीफ़देह थे। मैं गंभीर 'आइडेंटिटी क्राइसिस' (पहचान के संकट) से जूझ रही थी। मेरे कई जानने वालों ने मुझे 'चरित्रहीन' का तमग़ा तक दे दिया। कइयों ने कहा कि मुझे सेक्स की लत है और मुझे मनोचिकित्सक के पास जाना चाहिए। मैं काउंसलर के पास भी गई। मेरी काउंसलर ने मुझे काफ़ी हद तक समझा लेकिन साथ ही ये कहा कि कोई लड़का ये कैसे स्वीकार कर सकता है कि उसकी गर्लफ़्रेड के कई और बॉयफ़्रेंड हों? काउंसलर की बातों ने मुझे एक बार फिर ग्लानि से भर दिया था।इस बीच मैं पढ़ाई के लिए विदेश चली गई। वहां के माहौल ने मुझे ख़ुद को समझने में काफ़ी मदद की। वहां मैंने आधुनिक रिश्तों, सेक्स और इवोल्यूशन पर कई किताबें पढ़ीं। वहां मुझे अपने जैसे कई और लोग मिले जिन्होंने ख़ुद को स्वीकार किया था और वो ख़ुद पर शर्मिंदा नहीं थे। धीरे-धीरे मैं भी ग्लानि और शर्मिंदगी से निकलने लगी और ख़ुद को अपनाने लगी।

साथी तो मिला लेकिन...

विदेश में ही मुझे एक अन्य व्यक्ति में अपना साथी मिला। वो उम्र में मुझसे काफ़ी बड़े और समझदार थे। मैंने उनसे अपने स्वभाव के बारे में खुलकर बात की। उन्होंने कहा कि उन्हें मेरे विचारों और ज़िंदगी जीने के तरीके से कोई परेशानी नहीं है। हमें एक-दूसरे से प्यार था और हम ज़िंदगी को भरपूर जीने लगे। लेकिन तब सब कुछ बदल गया जब मैं किसी और के क़रीब जाने लगी। मेरे वो साथी सैद्धांतिक तौर पर तो 'पॉलीएमरी' से सहमत थे लेकिन जब ये असल रूप में उनके सामने आया तो वो इसे बर्दाश्त नहीं कर पाए। उन्होंने मुझसे कुछ इस तरह की बातें करनी शुरू कर दीं, मसलन- क्या मेरे प्यार में कोई कमी है? क्या हमारा रिश्ता इतना कमज़ोर है? क्या हमारी सेक्स लाइफ़ अच्छी नहीं है जो तुम किसी और की तरफ़ आकर्षित होने लगी हो? चूंकि मैं उन्हें सब कुछ पहले ही बता चुकी थी इसलिए अब मेरे पास उन्हें समझाने के लिए कुछ भी नहीं था। इस तरह हम धीरे-धीरे दूर होते चले गए।

जब ख़ुद को कहा, 'क़बूल है'

कुछ सालों बाद मैं वापस भारत आ गई। अब मेरे पास पॉलीएमरी के बारे में काफ़ी जानकारी इकट्ठी हो चुकी थी इसलिए मैंने इस बारे में और ज़्यादा पढ़ने के साथ-साथ रिसर्च करना शुरू किया। वक़्त के साथ मुझे पता चला कि भारत में भी बहुत से लोग 'पॉलीएमरस' हैं। अब मैं व्यक्तिगत तौर पर कम से कम 100 ऐसे लोगों को जानती हूं जो ख़ुद को 'पॉलीएमरस' मानते हैं। उन्होंने सोशल मीडिया पर इसके लिए बाक़ायदा कम्युनिटी और सपोर्ट ग्रुप्स बना रखे हैं जहां वो खुल कर बात कर सकते हैं। फ़ेसबुक पर एक ऐसा ही क्लोज़्ड ग्रुप है 'बेंगलुरु पॉलीऐमरी'। ये ग्रुप पॉलीएमरस लोगों के लिए मीटिंग्स, गेट-टुगेदर और स्पीड डेटिंग जैसे कार्यक्रम आयोजित करते हैं। मैं भी उनके एक ऐसे ही इवेंट में गई और वहां जाकर मुझे बहुत अच्छा महसूस हुआ। मुझे ऐसा लगा जैसे मैं अकेली नहीं हूं। कुछ इस तरह मेरी ज़िंदगी वापस ट्रैक पर आने लगी।

और फिर प्यार हो गया...

इसी बीच मैं डेटिंग ऐप टिंडर पर मिहिर से मिली। कुछ मुलाकातों के बाद मैंने मिहिर को अपने बारे में सब कुछ बता दिया। हम दोनों ने तय किया इस रिश्ते को पूरी ईमानदारी और बिना किसी दबाव के जिएंगे।मेरे और मिहिर के रिश्ते के छह महीने बाद मुझे कोई और पसंद आने लगा। मैं उसे डेट करना चाहती थी। मैंने ये बात मिहिर से बताई और उन्होंने मुझे उससे मिलने को कहा। जब मैं उससे मिलकर आई और मैंने मिहिर को बताया कि हमारे बीच जिस्मानी रिश्ते भी बने। ये सब सुनकर मिहिर ने काफ़ी सधी हुई प्रतिक्रिया दी। ऐसा नहीं था कि उन्हें बुरा नहीं लगा या उन्हें जलन नहीं महसूस हुई लेकिन उन्होंने अपनी भावनाओं को बड़े ही शालीन तरीके से व्यक्त किया। उनके बर्ताव ने मुझे बहुत प्रभावित किया। मैं समझ गई थी कि मिहिर आगे भी मेरा साथ देंगे। बाद में वो मेरे दूसरे पार्टनर से भी मिले। फिर कुछ समय बाद मुझे तीसरा शख़्स भी पसंद आया और मैंने उसके साथ भी अपने रिश्ते को आगे बढ़ाया। यानी सीधे शब्दों में कहें तो इस वक़्त मेरे तीन बॉयफ़्रेंड हैं और तीनों एक-दूसरे को जानते हैं। हालांकि मेरे प्राइमरी (मुख्य) पार्टनर मिहिर ही हैं और सबसे ज़्यादा वक़्त मैं उन्हीं के साथ बिताती हूं। वैसे, पॉलीएमरस होने की सबसे बड़ी चुनौती ये है कि आपके पास ख़ुद को देने के लिए बहुत कम वक़्त बचता है। लोगों के लिए एक रिश्ता निभाना ही मुश्किल होता है और मैं एक साथ दो-दो, तीन-तीन रिश्ते संभालती हैं। ऐसे में टाइम-मैनेजमेंट कई बार बेहद मुश्किल हो जाता है।

'लोग वेश्या कहते हैं तो ये जवाब देती हूं'
मैंने अपने माता-पिता को बता दिया है कि मैं पॉलीएमरस हूं। उन्होंने मुझे कुछ हद तक स्वीकार तो कर लिया है लेकिन उन्हें पॉलीऐमरी की अवधारणा ज़्यादा समझ नहीं आती। मिहिर को लेकर वो काफ़ी सहज हैं, वो हमारे घर भी आता-जाता है लेकिन मेरे बाकी दोनों पार्टनर्स को लेकर मेरा परिवार सहज नहीं है। मैं उन दोनों के बारे में घर में बात नहीं करती हूं। अगर आप शादी के बारे में पूछें तो मैं शादी नाम की संस्था के ही ख़िलाफ़ हूं। मुझे लगता है कि ये एक पितृसत्तात्मक संस्था है और इसका आधार सामाजिक से कहीं ज़्यादा आर्थिक है। लेकिन अगर मेरे ऊपर शादी का बहुत दबाव डाला गया या भविष्य में मेरे विचार बदले तो मैं मिहिर से ही शादी करना चाहूंगी। अब भी कई लोग ऐसे हैं जो मेरे बारे में जानकर मुझे चरित्रहीन और 'स्लट' (वेश्या) कहते हैं लेकिन मुझे फ़र्क पड़ना बंद हो गया है। कोई ज़्यादा बोलता है तो मैं सीधे कह देती हूं- हां, मुझे अलग-अलग मर्दों के साथ रिश्ते रखना पसंद है। तो?

मिहिर इस रिश्ते के बारे में क्या सोचते हैं?
मिहिर ने बीबीसी से बातचीत में कहा कि उन्हें गरिमा की सबसे अच्छी बात ये लगती है कि वो उनसे पूरी ईमानदारी बरत सकते हैं। उन्हें गरिमा से कुछ छिपाना नहीं पड़ता। वो उन्हें कभी जज नहीं करतीं। मिहिर कहते हैं, "गरिमा बेहद समझदार और बुद्धिमान लड़की हैं। वो अपने विचारों से किसी को भी प्रभावित कर सकती हैं। हालांकि रिश्ते की शुरुआत में मैं इस बात को लेकर थोड़ा डरता ज़रूर था कि अगर उन्हें कोई मुझसे बेहतर मिलेगा तो वो मुझे छोड़ देंगी लेकिन धीरे-धीरे मुझे समझ आ गया कि चाहे जो हो जाए, वो हमेशा मेरे साथ रहेंगी।" मिहिर कहते हैं कि उन्हें कई बार बुरा लगता है जब वो गरिमा के साथ वक़्त बिताना चाहते हैं और वो अपने दूसरे पार्टनर के साथ होती हैं। लेकिन फिर वो बातचीत के ज़रिए अपनी सारी भावनाएं एक-दूसरे के सामने ज़ाहिर कर देते हैं और इससे चीज़ें काफ़ी हद तक ठीक हो जाती हैं।

मिहिर का परिवार गरिमा को जानता है?
जवाब में वो कहते हैं, "मेरे परिवार के लोग जानते हैं कि गरिमा मेरी गर्लफ़्रेंड है लेकिन मैंने उन्हें ये नहीं बताया है कि गरिमा पॉलीएमरस है। मुझे नहीं लगता कि वो कभी इसे स्वीकार कर पाएंगे। हां, मेरे क़रीबी दोस्त ज़रूर इस बारे में जानते है।" मिहिर के अनुसार पॉलीएमरस रिश्ते में सबसे बड़ी चुनौती होती है- बातचीत की। वो कहते हैं, "कई बार आपका पार्टनर इतना व्यस्त होता है कि आपके पास एक-दूसरे से बात करने का वक़्त ही नहीं मिल पाता। ऐसे में थोड़ी दिक्कत महसूस होती है । हालांकि इस रिश्ते की सबसे बड़ी ख़ूबसूरती है ग्लानि से परे होकर एक-दूसरे के साथ ईमानदार होना। आपको अपने पार्टनर से कुछ छिपाने की ज़रूरत ही नहीं है। आप नए लोगों से मिल सकते हैं, उन्हें डेट कर सकते हैं और इस बारे में अपने पार्टनर से खुलकर बात कर सकते हैं।"

परिवार और शादी का क्या होगा?
इस सवाल पर मिहिर हंसते हुए कहते हैं, "इस बारे में तो हम लगभग रोज़ ही बात करते हैं! अगर हमारे बीच सबकुछ ठीक रहा और शादी करनी हुई तो बेशक़ गरिमा से ही करूंगा। बस एक डर मेरे मन में है। हो सकता है कि हमें अपने करियर के लिए अलग-अलग शहरों और देशों में जाना पड़े और मैं लॉन्ग-डिस्टेंस रिलेशनशिप निभाने में बहुत अच्छा नहीं हूं।"

पॉलीएमरी जन्मजात प्रवृत्ति है या महज चॉइस?
इस बारे में विशेषज्ञों की अलग-अलग राय है। सेक्स, प्रेम और इंसानी इच्छाओं के बारे में चर्चा करने वाले प्रोजेक्ट 'एजेंट ऑफ़ इश्क़' की अगुवाई करने वाली पारोमिता वोहरा ने बीबीसी से कहा, "समाजशास्त्रियों की मानें तो इंसान में पॉलीएमरी यानी एक से ज़्यादा पार्टनर रखने की आदत जन्म से ही मौजूद होती है। बाद में सभ्यता के विकास के साथ लोगों ने इंसानी जीवन कई सामाजिक नियमों से बांध दिया। मसलन, एक शख़्स को एक ही पार्टनर रखने की अनुमति। हालांकि कुछ लोगों के मामले में ये सिर्फ़ चॉइस का मामला भी हो सकता है।" पारोमिता कहती हैं, "मैं ये नहीं कहूंगी कि एक पार्टनर रखने का चलन बुरा है। कई मायनों में ये इंसानी ज़िंदगी को अनुशासित करता है लेकिन साथ ही ये हमें झूठे रिश्तों में बंधने के लिए मजबूर भी करता है। हम दूसरे रिश्तों में होते हुए भी अपने पार्टनर से झूठ बोलते रहते हैं और इस घुटन में पूरी ज़िंदगी बिता देते हैं। पॉलीएमरी कम से कम हमें झूठे बंधनों को तोड़कर ईमानदारी से जीने का मौका देती है।" पेशे से मनोवैज्ञानिक शिखा भारतीय सुप्रीम कोर्ट के हालिया फ़ैसले का ज़िक्र करती हैं जिसमें एडल्ट्री को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया गया था। वो कहती हैं, "अदालत के इस फ़ैसले के पीछे भी कहीं न कहीं ये सच्चाई छिपी है कि इंसानी इच्छाओं पर किसी का ज़ोर नहीं है और कम से कम इसे अपराध तो नहीं माना जा सकता।"

क्या कहते हैं सामाज विज्ञानी?
तमाम शोधकर्ता दावा करते हैं कि मनुष्य स्वभाव से 'मोनोगमस' (एक ही पार्टनर से रिश्ता रखने वाला) है ही नहीं। यानी ऐसा बहुत कम होता है जब किसी शख़्स का ज़िंदगी भर एक ही पार्टनर से रिश्ता हो। अमरीकी लेखक क्रिस्टोफ़र रायन ने इस विषय पर Sex at Dawn: How we Mate, Why we Stray और What it Means for Modern Relationships जैसी तमाम किताबें लिखी हैं। क्रिस्टोफ़र कहते हैं कि इंसान एक 'मोनोगमस' प्राणी के रूप में विकसित हुआ ही नहीं है। क्रिस्टोफ़र के मुताबिक, "अगर हम एक वक़्त में एक ही पार्टनर के साथ हैं तो इसका मतलब ये नहीं कि हम मोनोगमस हैं। पूरी ज़िंदगी में हमारे एक से ज़्यादा लोगों से सम्बन्ध होते हैं और इसे मोनोगैमी नहीं कहा जा सकता"। यूनिवर्सिटी ऑफ़ वॉशिंगटन के प्रोफ़ेसर डेविड पी. ब्रैश का मानना है कि मोनोगैमी यानी एक ही पार्टनर रखने की प्रथा हालिया है। प्रोफ़ेसर ब्रैश ने सेक्स, इवोल्यूशन और यौन रिश्तों में बेवफ़ाई जैसे विषयों पर कई किताबें लिखी हैं। उनका कहना है कि पुराने वक़्त में लोग एक ही वक़्त में कई रिश्तों में होते थे और इसे ग़लत भी नहीं माना जाता था। प्रोफ़ेसर ब्रैश का मानना है कि इंसान स्वाभाविक तौर पर मोनोगमस नहीं है लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि मोनोगैमी अप्राकृतिक है।


सन्दर्भ -सामिग्री :https://www.boloji.com/doha-details/29/kabir-yeh-ghar-prem-ka


(२ )Prem na badi upje, prem na haat bikai
Raja prja jis ruche, sis dey le jai
प्रेम न बाड़ी उपजे, प्रेम न हाट बिकाई |
राजा प्रजा जिस रुचे, सीस देय ले जाई ||
Love is not grown in the field, and it isn’t sold in the market
But a king or a pauper who likes it, offers his head to obtain it
MEANING


In the region of love there is no difference between king or pauper. Who wants to get love has to give up his ego, all other wealth has no value in love. Love is a spiritual and not a material thing.



Summer love triangle : Stock Photo


















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कभी - कभार जीवन की लय टूट जाती है। बे- शक आदमी अज़ीमतर शख्शियत का मालिक है अकूत क्षमताएं हैं उसमें। शायद जीवन में सब कुछ स्ट्रीमलाइन हो जाना भी है लय को तोड़ता है

हरे कृष्णा शिवे !जैजै श्री शिवे !जयतिजय शिवे ! कभी - कभार जीवन की लय टूट जाती है। बे- शक आदमी अज़ीमतर  शख्शियत का मालिक है अकूत क्षमताएं हैं उसमें। शायद जीवन में सब कुछ  स्ट्रीमलाइन हो जाना भी है लय को तोड़ता है हर चीज़ का समय निर्धारित हो जाना एक रसता पैदा करता है  ,रिजीडिटी को भी जन्म देता है। समबन्ध जो  भी हो मनोविकारों से दीर्घावधि ग्रस्त चले आये व्यक्ति  के साथ तालमेल बिठाते -बिठाते कभी एकरसता महसूस होने लगती है। संशाधन कमतर से लगने लगते हैं। तिस पर यदि शारीरिक अस्वस्था भी व्यक्ति को अपनी गिरिफ्त में ले ले तब सब कुछ और अपूर्ण सा लगने लगता है। कुछ ऐसे ही पलो के गर्भ में क्या है इस की टोह लेने की फिराक में लिखने को बाध्य सा हुआ हूँ।  कुछ कहने कुछ सुनने की ललक भी प्रेरित करती होगी लेखन को ?लगता है इस तालमेल की कमी का एक ही समाधान है हम अधिकाधिक सद्भावना मनोरोग संगी के संग रखें ,उसे अक्सर प्रोत्साहित करने ,तंज बिलकुल न करें जहां तक मुमकिन हो व्यंग्य की भाषा से परहेज़ रखें।  तुम्हें क्या लगता है ? वीरुभाई !