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कभी - कभार जीवन की लय टूट जाती है। बे- शक आदमी अज़ीमतर शख्शियत का मालिक है अकूत क्षमताएं हैं उसमें। शायद जीवन में सब कुछ स्ट्रीमलाइन हो जाना भी है लय को तोड़ता है

हरे कृष्णा शिवे !जैजै श्री शिवे !जयतिजय शिवे !

कभी - कभार जीवन की लय टूट जाती है। बे- शक आदमी अज़ीमतर  शख्शियत का मालिक है अकूत क्षमताएं हैं उसमें। शायद जीवन में सब कुछ  स्ट्रीमलाइन हो जाना भी है लय को तोड़ता है हर चीज़ का समय निर्धारित हो जाना एक रसता पैदा करता है  ,रिजीडिटी को भी जन्म देता है। समबन्ध जो  भी हो मनोविकारों से दीर्घावधि ग्रस्त चले आये व्यक्ति  के साथ तालमेल बिठाते -बिठाते कभी एकरसता महसूस होने लगती है। संशाधन कमतर से लगने लगते हैं। तिस पर यदि शारीरिक अस्वस्था भी व्यक्ति को अपनी गिरिफ्त में ले ले तब सब कुछ और अपूर्ण सा लगने लगता है। कुछ ऐसे ही पलो के गर्भ में क्या है इस की टोह लेने की फिराक में लिखने को बाध्य सा हुआ हूँ। 


कुछ कहने कुछ सुनने की ललक भी प्रेरित करती होगी लेखन को ?लगता है इस तालमेल की कमी का एक ही समाधान है हम अधिकाधिक सद्भावना मनोरोग संगी के संग रखें ,उसे अक्सर प्रोत्साहित करने ,तंज बिलकुल न करें जहां तक मुमकिन हो व्यंग्य की भाषा से परहेज़ रखें। 

तुम्हें क्या लगता है ?

वीरुभाई !

 

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 भगवान् के यहां देर है अंधेर नहीं। मल्लिकाए पश्चिमी बंगाल के खिलंदड़ों ने इस प्रदेश को नक्सलबाड़ी की तर्ज़ पर ममताबाड़ी  में तब्दील करके रख दिया था। रक्तरँगी वामियों ने जिस हिंसा को अपने काडर में नीचे तक पहुंचाया उससे लड़ते लड़ते मल्लिका -ए -बंगाल ने उसे ही न केवल अंगीकार कर लिया उसे नफरत और दमन का औज़ार भी बनाया। कहते हैं एक दिन घूरे के भी दिन फिरते हैं कौन जाने इसकी शुरुआत हो चुकी है कोई भी न्यायिक फैसला छोटा नहीं होता। कोलकाता उच्च न्यायालय का फैसला जनअपेक्षाओं के अनुरूप ही आया है जिसका हार्दिक स्वागत है प्रजातंत्र में हिंसा की अंतिम परिणति इस्लामी अमीरात ही बनती है। इसे मूक दर्शक बनके अब और नहीं निहारा जा  सकेगा। सामाजिक न्याय ईश्वरीय न्याय का अपना विधान है : कर्म प्रधान विश्व रची राखा , जो जस करहि सो तस फल चाखा।  करतम  सो भोगतं  अपनी  करनी ,पार उतरनी।  चिंता ताकि कीजिये , जो अनहोनी होइ  , एहू मार्ग  संसार को ,,नानक थिर नहीं कोइ  .   SANJAY DAS Copyright: SANJAY DAS पश्चिम बंगाल में चुनाव बाद की हिंसा की सुनवाई कर रहे कल...