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भगवान् के यहां देर है अंधेर नहीं। मल्लिकाए पश्चिमी बंगाल के खिलंदड़ों ने इस प्रदेश को नक्सलबाड़ी की तर्ज़ पर ममताबाड़ी में तब्दील करके रख दिया था। रक्तरँगी वामियों ने जिस हिंसा को अपने काडर में नीचे तक पहुंचाया उससे लड़ते लड़ते मल्लिका -ए -बंगाल ने उसे ही न केवल अंगीकार कर लिया उसे नफरत और दमन का औज़ार भी बनाया

 भगवान् के यहां देर है अंधेर नहीं। मल्लिकाए पश्चिमी बंगाल के खिलंदड़ों ने इस प्रदेश को नक्सलबाड़ी की तर्ज़ पर ममताबाड़ी  में तब्दील करके रख दिया था। रक्तरँगी वामियों ने जिस हिंसा को अपने काडर में नीचे तक पहुंचाया उससे लड़ते लड़ते मल्लिका -ए -बंगाल ने उसे ही न केवल अंगीकार कर लिया उसे नफरत और दमन का औज़ार भी बनाया। कहते हैं एक दिन घूरे के भी दिन फिरते हैं कौन जाने इसकी शुरुआत हो चुकी है कोई भी न्यायिक फैसला छोटा नहीं होता। कोलकाता उच्च न्यायालय का फैसला जनअपेक्षाओं के अनुरूप ही आया है जिसका हार्दिक स्वागत है प्रजातंत्र में हिंसा की अंतिम परिणति इस्लामी अमीरात ही बनती है। इसे मूक दर्शक बनके अब और नहीं निहारा जा  सकेगा। सामाजिक न्याय ईश्वरीय न्याय का अपना विधान है :

कर्म प्रधान विश्व रची राखा ,

जो जस करहि सो तस फल चाखा। 

करतम  सो भोगतं 
अपनी  करनी ,पार उतरनी। 

चिंता ताकि कीजिये , जो अनहोनी होइ  ,
एहू मार्ग  संसार को ,,नानक थिर नहीं कोइ  .  

कलकत्ता उच्च न्यायालय

पश्चिम बंगाल में चुनाव बाद की हिंसा की सुनवाई कर रहे कलकत्ता हाईकोर्ट ने बृहस्पतिवार को ममता बनर्जी सरकार को झटका देते हुए हत्या और अपहरण जैसे गंभीर मामलों की जांच सीबीआई को सौंपने और कम गंभीर मामलों की जांच के लिए तीन सदस्यीय विशेष जांच बल (एसआईटी) के गठन का फैसला किया है.

इस मामले की सुनवाई तीन अगस्त को पूरी हो गई थी. मुख्य न्यायधीश राजेश बिंदल की अध्यक्षता वाली पांच जजों की वृहत्तर पीठ ने आज इस मामले का फैसला सुनाया.

इससे पहले हाईकोर्ट के निर्देश पर राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की एक टीम ने राज्य के विभिन्न हिस्सों का दौरा कर हिंसा पर अदालत को अपनी रिपोर्ट सौंपी थी.

राज्य सरकार ने उस रिपोर्ट की निष्पक्षता पर सवाल उठाए थे. लेकिन हाईकोर्ट ने इस आरोप को खारिज कर दिया है.

अदालत ने राज्य सरकार को हिंसापीड़ितों को तुरंत मुआवजा देने का भी निर्देश दिया है.

तीन-सदस्यीय एसआईटी का गठन करते हुए हाईकोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज की निगरानी में जांच का निर्देश दिया है.

राज्य में विधानसभा चुनाव के बाद कई इलाकों में हिंसा और आगजनी की खबरें सामने आई थीं.

बीजेपी ने इस हिंसा के लिए टीएमसी को जिम्मेदार ठहराते हुए अपने दर्जनों कार्यकर्ताओं के मारे जाने और हज़ारों के बेघर होने का दावा किया था.

इस मुद्दे पर हाईकोर्ट में कई जनहित याचिकाएं भी दायर की गई थीं. उन पर सुनवाई के बाद कलकत्ता हाईकोर्ट ने बीते 18 जून के अपने फैसले में हिंसा के मामलों की जांच आयोग से कराने का निर्देश देते हुए सरकार को इसमें सहयोग करने को कहा था.

राज्य सरकार ने अदालत के उस फैसले के खिलाफ पुनर्विचार याचिका भी दायर की थी. लेकिन उसे खारिज करते हुए अदालत ने सरकार की कड़ी आलोचना की थी.

पांच जजों की वृहत्तर पीठ ने कहा था कि पहले तो राज्य सरकार हिंसा के आरोपों को स्वीकार नहीं कर रही है. लेकिन अदालत के पास ऐसी कई घटनाओं के सबूत हैं.

अदालत के निर्देश पर राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने हिंसा के कथित मामलों की जांच के लिए आयोग के सदस्य राजीव जैन की अध्यक्षता में एक सात-सदस्यीय टीम का गठन किया था.

इस टीम ने 20 दिनों के दौरान राज्य के 311 स्थानों का दौरा कर हिंसा से प्रभावित लोगों से बातचीत की थी और 13 जुलाई को अदालत को अपनी रिपोर्ट सौंपी थी.

मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने पहले बीजेपी पर हिंसा को सांप्रदायिक रंग देने और फर्जी तस्वीरों और वीडियो का इस्तेमाल करने का आरोप लगाते हुए कहा था कि कुछ जगह छिटपुट हिंसा हुई है.

पश्चिम बंगाल


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