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शीर्षक : परिंदे अब भी पर तौले हुए हैं ,हवा में सनसनी घोले हुए हैं :जी ज़नाब देश में आपात काल जैसे हालात हैं -श्री यशवंत सिन्हा जी





 
Virendra Sharma shared a memory.
3 hrs
 

भले अ -सहनशीलता का मुद्दा उठाने वाले कई अशोक आज शोकाकुल हैं क्योंकि अब मैदान में उनके पिताजी उतर आएं हैं यह कहते हुए कि आज देश में आपातकाल जैसे हालत हैं। बिलकुल हैं क्योंकि आज :
(१ )सरे आम चंद कुरसाये लोग(जयचंदी नरेश ) जिन्हें सत्ता कुर्सी नहीं मिली अपेक्स कोर्ट के न्यायाधीशों को रात बिरात उठाकर देश की प्रति-रक्षा से जुड़े मामलों को भी पलीता लगाने के लिए छुट्टा घूम रहें हैं।
(२ )चंद ऐयाश किस्म के कन्हैयाँ ऐयाशी के अड्डों में पढ़े -बढ़े आज यह कहने को स्वतन्त्र है कि देश का प्रधान-मंत्री ना -लायक है
(३ )एक सनका हुआ संकर ब्रीड का शहज़ादा कहता घूम रहा है देश का चौकीदार चोर है। इस -नबाव ज़ादे को इतना इल्म नहीं है देश चौकीदारी सीमा के सुरक्षा शौर्य बल के पास होती है किसी नागर तंत्र के मुखिया के पास नहीं।
देश में हालात वाकई आपातकाल जैसे हैं। कुछ बदला नहीं है लौटंकों और नौटंकी का स्वरूप ही बदला है।
(४ )एक पूर्व प्रधानमन्त्री कहते हैं मेरी सरकार किसी रिमोट से नहीं चल रही थी। ठीक बोल रहे हैं :सरकारें तो आदतन चलती हैं ,ये कहना चाहते हैं मैं रिमोट से चल रहा था मेरी सरकार नहीं।
इन्हीं माननीय का संविधानिक निर्णय एक सनके हुए शहज़ादे ने सरे आम यह कहते हुए फाड़ दिया था "ऑर्डिनेंस फर्डिनेंस 'कुछ नहीं होता है।
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माननीय सुधीर चौधरी भाई (ज़ीन्यूज़ ) ,
आप टुकड़खोर ,चाटुकार , साहित्य से अर्थार्जन करने वाले लौटंक साहित्यिक कलहकारों ,चंद बोलीवुडिया कलहकार खानों के व्यवहार की संवेदन हीनता से आहत न हों। कश्मीर का दर्द इनकी संवेदनाओं का वायस नहीं हो सकता। ये इस या उस राजनीति के भड़बूज़ों के पाले हुए हैं। आप सोचते हैं आमिर खान के अंदर ऐंठन उनकी अपनी है। पूरा दगैल तंत्र है इनके पीछे जो देश की सम्पदा को लूट रहा था। कभी नेशनल हेराल्ड के बहाने कभी कोई विदेशी कम्पनी से मुनाफ़ा बटोरने के बहाने। इस्केम तो इनका पेशा था।
इस देश का सहिष्णु मन अब नंगों को नंगा कहना सीख गया है। आज वो विरक्त भाव से ये नहीं कहता -कोई नृप होय हमें का हानि। वह आशावान है एक दगैल तंत्र से मुक्ति के बाद।
राजनीति
परिंदे अब भी पर तौले हुए हैं ,हवा में सनसनी घोले हुए हैं :जी ज़नाब देश में आपात काल जैसे हालात हैं -श्री यशवंत सिन्हा जी  से विमुख युवा भीड़ भी आज खबरदार है। बैंगलुरु में शहजादे को अपना कद पता चल गया होगा।देश को प्रधानमन्त्री मिलगया है जो आर्त भाव से नहीं बराबरी के भाव से संवाद करता है। विदेशी निवेश का भारत की और बहाव हमारे अनिवासी भारतीयों को भी भारत की और खींचेगा। अभी तक तो ऐसे हालात ही न थे कि दगैल तंत्र के बीच कोई आने का भी सोच सके। जबकि कितने ही वापस आना चाःते हैं। एक स्वच्छ तंत्र चाहिए सबसे पहले जिसकी नींव अब तैयार है।
जैश्रीकृष्णा।

शीर्षक : परिंदे अब भी पर तौले हुए हैं ,हवा में सनसनी घोले हुए हैं :जी ज़नाब देश में आपात काल जैसे हालात हैं -श्री यशवंत सिन्हा जी 

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हरे कृष्णा शिवे !जैजै श्री शिवे !जयतिजय शिवे ! कभी - कभार जीवन की लय टूट जाती है। बे- शक आदमी अज़ीमतर  शख्शियत का मालिक है अकूत क्षमताएं हैं उसमें। शायद जीवन में सब कुछ  स्ट्रीमलाइन हो जाना भी है लय को तोड़ता है हर चीज़ का समय निर्धारित हो जाना एक रसता पैदा करता है  ,रिजीडिटी को भी जन्म देता है। समबन्ध जो  भी हो मनोविकारों से दीर्घावधि ग्रस्त चले आये व्यक्ति  के साथ तालमेल बिठाते -बिठाते कभी एकरसता महसूस होने लगती है। संशाधन कमतर से लगने लगते हैं। तिस पर यदि शारीरिक अस्वस्था भी व्यक्ति को अपनी गिरिफ्त में ले ले तब सब कुछ और अपूर्ण सा लगने लगता है। कुछ ऐसे ही पलो के गर्भ में क्या है इस की टोह लेने की फिराक में लिखने को बाध्य सा हुआ हूँ।  कुछ कहने कुछ सुनने की ललक भी प्रेरित करती होगी लेखन को ?लगता है इस तालमेल की कमी का एक ही समाधान है हम अधिकाधिक सद्भावना मनोरोग संगी के संग रखें ,उसे अक्सर प्रोत्साहित करने ,तंज बिलकुल न करें जहां तक मुमकिन हो व्यंग्य की भाषा से परहेज़ रखें।  तुम्हें क्या लगता है ? वीरुभाई !  

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