Skip to main content

नेहरू पंथी चाटुकारिता के कमाल

शशि थरूर साहब फरमाते हैं यदि आज एक चाय वाला भी इस देश का प्रधानमन्त्री बन सका है तो इसका सारा श्रेय पंडित जी (पंडित जवाहर लाल नेहरू )को जाता है। पूछा जा सकता है और इस बात को देश का प्रबुद्ध -सुबुद्ध वर्ग जानता है और अच्छी तरह से मानता है कि यदि सरदार पटेल जैसे लोगों का शौर्य का संग साथ देश की अस्मिता अखंडता को उस समय एक रखने में न होता जिनके साथ कांग्रेस समिति का प्रचंड बहुमत था तब नेहरू क्या खुद ही उछलकर प्रधानमन्त्री की कुर्सी पर बैठ जाते। सब जानते हैं  गांधी से पंडित मोती लाल नेहरू वचन ले चुके थे कि जवाहर को ही इस देश  का प्रधानमन्त्री आप बनवाएंगे।

 फिरंगी  भी यही चाहते थे -नेहरू जैसे कमज़ोर व्यक्ति को ही वह सत्ताशीन देखना चाहते थे जो भारत को एक शक्तिशाली राष्ट्र न बन ने देवे। 

शशि थरूर को अभी तक एक पढ़ा लिखा सुविज्ञ व्यक्ति माना जाता रहा है। जिन्हें इस देश की भाषा पर भी महारत हासिल है आज वह उन लोगों की चाटुकारिता कर रहें हैं जिनके कुनबे में ले देकर तीन व्यक्ति हैं और तीनों ही भाषा  और इस देश की संस्कृति के बारे में कुछ नहीं जानते. एक प्राणि तो दशकों से यहां की भाषा ही नहीं सीख सका है। 

समझ में नहीं आता उन लोगों की चाटुकारिता करने से शशिथरूर को क्या बड़ा लाभ मिलने जा रहा है या वर्तमान में मिल रहा है जो वह अपने अल्पज्ञ होने का अबुधकुमार  होने का प्रमाण दर प्रमाण देते चले जा रहे हैं।

दूसरी तरफ एक 'मसखरे निहायत ही अपरिपक्व' ,देश की इस सबसे बड़ी और पुरानी -पार्टी के 'अध्यक्ष' हैं जो खैर इन दिनों ज़मानत पर हैं लेकिन देश की प्रतिरक्षा से जुड़े मामलों पर भी झूठ पर झूठ बोले जा रहें हैं। 

लगता है नेहरू पंथी तमाम चाटुकारों को कोई बड़ा लाभ यह ज़मानती कुनबा मुहैया करवा रहा है जो यह जानते हैं और मानते हैं कि नरेंद्र दामोदर मोदी की बात फ्रांस जैसे विकसित राष्ट्र आँख मींचकर मान रहे हैं तथा जो मोदी  कह रहे हैं वह वही बोल रहें हैं। जिन देशों का  प्रजातंत्र अति -परिपक्व अवस्था में है वह मोदी का कहा बोल रहे हैं ,सबके सब झूठ बोल रहें हैं। चाहें वह दसां का मुख्य प्रशासनिक अधिकारी हो चाहे फ़्रांस के राष्ट्रपति।स्वामी असत्यानन्द खुजलीवाल को झूठ बोलने देश को गुमराह करने के मामले में यह मसखरा बहुत पीछे छोड़ चुका है भारत धर्मी समाज ऐसा मानता है। लेकिन ये चाटुकार इसे महत्मागांधी और सत्यवादी  हरिश्चंद्र घोषित करने पर जी जान से जुटे हुये  हैं। 

देखिये कैसा समर्पण कैसी निष्ठा है इन नेहरुपंथी चाटुकारों की सब कुछ जानते हुए मानते हुए भी मसखरे भ्रम -चारि की अंधी  पैरवी किये जा रहे हैं। यह किसी कमाल से कम है क्या ?   

Comments

Popular posts from this blog

कभी - कभार जीवन की लय टूट जाती है। बे- शक आदमी अज़ीमतर शख्शियत का मालिक है अकूत क्षमताएं हैं उसमें। शायद जीवन में सब कुछ स्ट्रीमलाइन हो जाना भी है लय को तोड़ता है

हरे कृष्णा शिवे !जैजै श्री शिवे !जयतिजय शिवे ! कभी - कभार जीवन की लय टूट जाती है। बे- शक आदमी अज़ीमतर  शख्शियत का मालिक है अकूत क्षमताएं हैं उसमें। शायद जीवन में सब कुछ  स्ट्रीमलाइन हो जाना भी है लय को तोड़ता है हर चीज़ का समय निर्धारित हो जाना एक रसता पैदा करता है  ,रिजीडिटी को भी जन्म देता है। समबन्ध जो  भी हो मनोविकारों से दीर्घावधि ग्रस्त चले आये व्यक्ति  के साथ तालमेल बिठाते -बिठाते कभी एकरसता महसूस होने लगती है। संशाधन कमतर से लगने लगते हैं। तिस पर यदि शारीरिक अस्वस्था भी व्यक्ति को अपनी गिरिफ्त में ले ले तब सब कुछ और अपूर्ण सा लगने लगता है। कुछ ऐसे ही पलो के गर्भ में क्या है इस की टोह लेने की फिराक में लिखने को बाध्य सा हुआ हूँ।  कुछ कहने कुछ सुनने की ललक भी प्रेरित करती होगी लेखन को ?लगता है इस तालमेल की कमी का एक ही समाधान है हम अधिकाधिक सद्भावना मनोरोग संगी के संग रखें ,उसे अक्सर प्रोत्साहित करने ,तंज बिलकुल न करें जहां तक मुमकिन हो व्यंग्य की भाषा से परहेज़ रखें।  तुम्हें क्या लगता है ? वीरुभाई !  

दर्द नशा है इस मदिरा का ,विगत स्मृतियाँ साकी हैं , पीड़ा में आनंद जिसे हो, आये मेरी मधुशाला

धर्म एव हतो हन्ति धर्मो रक्षति रक्षित : मरा हुआ धर्म मारने वाले का नाश ,और रक्षित किया हुआ धर्म रक्षक की रक्षा करता है इसलिए धर्म का हनन कभी न करना ,इसलिए कि मरा हुआ धर्म कभी हमको न मार डाले। जो पुरुष धर्म का नाश करता है ,उसी का नाश धर्म कर देता है ,और जो धर्म की रक्षा करता है ,उसकी धर्म भी रक्षा करता है। इसलिए मारा हुआ धर्म कभी हमको न मार डाले इस भय से धर्म का हनन अर्थात  त्याग कभी न करना चाहिए। यत्र धर्मो ह्यधर्मेण सत्यं यत्रानृतेन च ।  हन्यते प्रेक्षमाणानां हतास्तत्र सभासदः ‘‘जिस सभा में अधर्म से धर्म, असत्य से सत्य, सब सभासदों के देखते हुए मारा जाता है, उस सभा में सब मृतक के समान हैं, जानों उनमें कोई भी नहीं जीता ।’’ महाभारत का  भीष्म पर्व -भरी सभा  में जिसमें नामचीन भीष्म पितामह ,धृतराष्ट्र ,आदिक------ पाँचों पांडव -----मौजूद थे धूर्त और ज़िद्दी मूढ़ -मति दुर्योधन और कर्ण के मातहत दुश्शासन द्रौपदी का चीरहरण करता है यह तो भला हो अपने कन्हैयाँ का वस्त्र अवतार बन के आ गए द्रौपदी की आर्त : पुकार सुनके -और दुश्शासन थक हार के गिर पड़ा  यत्र धर्मो ह्य...

प्रेम के बदलते स्वरूप की ओर आपकी तवज्जो चाहेंगे। हम जज की भूमिका में नहीं आएंगे और न ही नैतिक अनैतिक लफ़्फ़ाज़ी करेंगे ,समाज की अनेक परतें है प्रेम भी उसी के अनुरूप बहु -परतीय ,बहु -युगलीय होता चला गया है ,यहां हम दोनों की झांकी प्रस्तुत कर रहें हैं। सुतराम !पहले उद्दात्त स्वरूप की झलक अनन्तर बहु -युगलीय प्रेम से आपका परिचय नज़दीकी से कराएंगे :

कबीर यहु घर प्रेम का ,खाला का घर नाहिं , सीस उतारे हाथ धरि सो पैठे घर माहिं।  व्याख्या :प्रेम यौद्धा वही है जो दैहिक प्रेम से परे चला गया  जिसने काम क्रोध दोनों को जीत लिया है ,माया मोह लोभ से जो पार गया है जिसने अपना अहंकार तज  दिया है आंतरिक शत्रुओं को जिसने मात दे दी है जो करुणा और तदअनुभूतिं से भर गया है वही सच्चा प्रेमी है ,ये खाला जी मौसी साहिबा का घर नहीं है जहां आपकी आवभगत होगी जहां मेहमान नवाज़ी चलती है अदबियत के तहत।  पूछा जा सकता है :फिर यह पोली- अमोरस (poly amorous ) लव क्या है। एकल पति एकल पत्नी प्रेम ,बहुपत्नी प्रेम ,बहुपति प्रेम या बहुपतित्व ,सहजीवन कहो तो लिविंग टुगेदर के बाद अब बहुयुगलीय प्रेम यानी पोली -अमोरस  प्रेम ने दस्तक दी है। यहां हम उद्दात्त प्रेम और पशु स्तरीय प्रेम की बात नहीं करेंगे। प्रेम के बदलते स्वरूप की  ओर आपकी तवज्जो चाहेंगे। हम जज की भूमिका में नहीं आएंगे और न ही नैतिक अनैतिक लफ़्फ़ाज़ी करेंगे ,समाज की अनेक परतें है प्रेम भी उसी के अनुरूप बहु -परतीय ,बहु -युगलीय होता चला गया है ,यहां हम दोनों की झांकी प्रस्तुत ...